ये आँखें बिल्कुल वैसी हैं जैसी मिरे ख़्वाब में आती थीं पेशानी थोड़ी हट कर है पर होंटों पर मुस्कान की बनती मिटती लहरें वैसी हैं आवाज़ का ज़ेर-ओ-बम भी बिल्कुल वैसा है और हाथ जिन्हें में ख़्वाब में भी छूना चाहूँ तो काँप उठूँ ये हाथ भी बिल्कुल वैसे हैं ये चेहरा बिल्कुल वैसा है पर इस पर छाई ख़ामोशी कुछ अन-देखी और उस चेहरे पर शाम ज़रा सी गहरी है इन शानों का फैलाओ थोड़ा कम है लेकिन क़ामत बिल्कुल वैसी है और तुम से मिल कर मेरे दिल की हालत बिल्कुल वैसी है