इस में मेरी तो कोई ग़लती नहीं मैं जब पैदा हुई तो किसी ने मुझ को ज़िंदा दफ़नाया नहीं जब मेरे पर-ओ-बाल निकलना शुरूअ' हुए तब किसी ने मेरे परों को नहीं काटा जब मैं ने बोलना सीखा तब किसी ने मेरी ज़बान नहीं काटी जब मैं ने अपने पैरों पर चलना सीखा तब किसी ने मेरे पाँव नहीं काटे मैं ने जब देखना शुरूअ' किया किसी ने मेरी आँखें नहीं नोचें मैं सोचती थी जब किसी ने मुझे पागल नहीं कहा मैं लिखती थी जब किसी ने मुझ से क़लम क्यूँ नहीं छीना मेरे जन्म से अब तक जो होता रहा वो किसी ने नहीं बदला अब में जैसी हूँ उसे कैसे बदल लूँ मैं जैसी भी हूँ उस में मेरी तो कोई ग़लती नहीं