ज़िंदगी की राहों में बारहा ये देखा है सिर्फ़ सुन नहीं रक्खा ख़ुद भी आज़माया है तजरबों से साबित है जो भी पढ़ते आए हैं उस को ठीक पाया है इस तरह की बातों से मंज़िलों से पहले ही साथ छूट जाते हैं लोग रूठ जाते हैं ये तुम्हें बता दूँ मैं चाहतों के रिश्ते में फिर गिरह नहीं लगती लग भी जाए तो उस में वो कशिश नहीं होती एक फीका फीका सा राब्ता तो होता है ताज़गी नहीं रहती रूह के तअ'ल्लुक़ में ज़िंदगी नहीं रहती बात वो नहीं बनती दोस्ती नहीं रहती लाख बार मिल कर भी दिल कभी नहीं मिलते ज़ेहन के झरोखों में याद के दरीचों में तितलियों के रंगों के फूल फिर नहीं खिलते इस लिए मैं कहता हूँ इस तरह की बातों में एहतियात करते हैं इस तरह की बातों से इज्तिनाब करते हैं