कौन कहता है हम तुम जुदा हो गए ज़िंदगी से अचानक ख़फ़ा हो गए हिज्र-ए-आलम पे छाया था कुछ इस तरह वस्ल के ख़्वाब वक़्फ़-ए-दुआ हो गए वक़्त-ए-मीज़ान में जाने क्या बात थी तीर जो बे-ख़ता थे ख़ता हो गए हम कि जिस बुत को बे-जान समझा किए वो ज़माने में क्यूँ देवता हो गए एक दिन यूँ हुआ हुस्न-ए-सरकार में मुद्दई' जो न थे मुद्दआ' हो गए कुछ इरादे भी थे कुछ तमाशे भी थे रक़्स के अक्स भी मावरा हो गए देखते देखते हम फ़ना थे मगर देखते देखते तुम ख़ुदा हो गए