ज़बाँ से नफ़रत क्यूँ

जहाँ भी छानूँ घनी हो क़याम करते चलो
अदब जहाँ भी मिले एहतिराम करते चलो

हर इक ज़बान को यारो सलाम करते चलो
गिरोह की है न फ़िरक़े की और न मज़हब की

ज़बाँ विरासत-ए-इंसानियत है हम सब की
ज़बाँ के बाब में मन और तू की हद कैसी

कोई ज़बान हो इंसाँ को उस से कद कैसी
ज़बान पाक है गाँव की गोरियों की तरह

ज़बाँ अज़ीम है माओं की लोरियों की तरह
ज़बाँ तसलसुल-ए-तारीख़-ए-ज़िंदगानी है

ज़बान मनाज़िल-ए-तहज़ीब की कहानी है
ज़बान बहते हुए वक़्त की रवानी है

नज़र में हो जो बुलंदी भी और वुसअ'त भी
तो हर ज़बान में इक हुस्न भी है अज़्मत भी

वो रात का है पुजारी सहर का दुश्मन है
जो है ज़बान का दुश्मन बशर का दुश्मन है

ज़मीं का हुस्न है खेतों की ताज़गी है ज़बाँ
रहट की लय है तो पनघट की रागनी है ज़बाँ

गली का शोर घरों की हमाहमी है ज़बाँ
जुनून-ए-ज़ीस्त की आहट है गुनगुनाहट है

ज़बाँ हयात के होंटों की मुस्कुराहट है
फ़रेब-ओ-मस्लहत-ओ-मक्र-ओ-रस्मियात नहीं

रिया का ज़िक्र बयान-ए-तकल्लुफ़ात नहीं
ज़बान अहल-ए-सियासत के बस की बात नहीं

ज़बाँ मचलती है मिट्टी पे चहचहों की तरह
ज़बाँ निकलती है चिलमन से ज़मज़मों की तरह

ज़बान उबलती है आँगन के क़हक़हों की तरह
ज़बान बनती है चौपाल में जवाँ की तरह

ज़बान बनती है बैठक में दास्ताँ की तरह
ज़बान ढलती है बाज़ार में दुकानों में

ज़बान चलती है कूचों में कार-ख़ानों में
ज़बाँ क़दम-ब-क़दम सीढ़ियों पे चढ़ती है

ज़बान प्यार मोहब्बत से आगे बढ़ती है
न दफ़्तरों न कहीं फ़ाइलों में ढलती है

ज़बान धरती के सीने से लग के चलती है
ज़बाँ लबों का सलीक़ा दिलों का नूर भी है

ज़बान क़ौम की इज़्ज़त भी है ग़ुरूर भी है
ज़बाँ अवाम की मेहनत भी है शुऊ'र भी है

किसी शुऊ'र से आख़िर हमें अदावत क्यूँ
कोई ज़बान हो इंसाँ को उस से नफ़रत क्यूँ

ज़बान पाक है गाँव की गोरियों की तरह
ज़बाँ अज़ीम है माओं की लोरियों की तरह


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