ज़ाइक़े जब हेम-बर्गर के ज़बाँ तक आ गए पहले ना करते थे जो साहिब वो हाँ तक आ गए उठ के पानी भी न पीते थे जो शाएर अपने घर दाद की ख़ातिर वो 'ज़र्रीं' के मकाँ तक आ गए उस गुलू-कारा में रेशम की थी कुछ ऐसी चमक सद्र-ए-महफ़िल भी खिसक कर 'रेशमाँ' तक आ गए उस ने इस अंदाज़ से चूमा मिरी तहरीर को मेरे लेटर पर लिपस्टिक के निशाँ तक आ गए