आओ ज़िंदगी ज़िंदगी खेलें ये झूट है कि मैं तुम्हारे लिए चाँद तोड़ के ला सकता हूँ पर इस ख़याल की सच्चाई को ही इश्क़ कहते हैं रूह जब जलती है तो कुंदन बनता है तेरी बेवफ़ाई की इस से अच्छी वज्ह और क्या हो सकती है सुब्ह से रोटी कमाने में लगा हुआ हूँ अब जब शाम हो गई है तो शराब पीने का मन होता है मेरे दाग़-ए-दिल में एक चराग़ ऐसा भी है जो अमावस की रात में मेरी बुझती साँसों को गरमाहट देता है आदमी की खुदाई का वक़्त क्यूँ नहीं आता दुनिया मर रही है कोई उसे बचाने क्यूँ नहीं आता तेरे आने से वह तमाम अधूरे ख़्वाब पूरे हो गए जिन्हें देखना ना मेरी तक़दीर में था और ना तदबीर में मैं एक मशहूर शाइर नहीं पर उस से मेरी शायरी में दर्द कम तो नहीं हो जाता कोरे काग़ज़ पर भी कुछ शब्द बसते हैं हम बस उन्हें पढ़ नहीं पाते कौन किस के ख़िलाफ़ गवाही दे सब के मन में एक चोर तो है ही मेरी गवाही उस की जान ले सकती है गवाही ना दी तो मेरा ज़मीर मुझे मार देगा चंद दोस्तों के अफ़्साने अब पराए हो गए हैं अब खोटे सिक्के जेब में रखने का मन नहीं होता जब भी किसी शमशान के पास से गुज़रता हूँ अपनी औक़ात पता लग जाती है कल रात आईना देख कर क्यूँ नहीं सोया सुब्ह अपने ही घर में पराया बन गया हर शहर हर गली में सिर्फ़ लोगों की चीख़ें सुनाई देतीं हैं राम रहीम के इस झगड़े में उन दोनों के अलावा सब हैं