तुम्हारी याद की ख़ुश्बू लगाई थी मैं ने तमाम रात मिरे जिस्म-ओ-जाँ महकते रहे सुरूर-ए-हिज्र के मौसम में भी न माँद पड़ा हवास ज़ब्त के आलम में भी बहकते रहे दयार-ए-ख़्वाब में कुछ ताईरान-ए-ख़ुश-आवाज़ तुम्हारे आने की उम्मीद में चहकते रहे नवाह-ए-दिल में कई रौशनी भरे साए वुफ़ूर-ए-शौक़ से गाते रहे लहकते रहे मैं तुम से दूर था लेकिन तुम्हारे हाथ में था गुज़िश्ता शब मैं किसी और काएनात में था