जहान-दुश्मन By Nazm << तराना-ए-यौम-ए-मज़दूर इश्क़ >> किसी मज़हब ने तशद्दुद की इजाज़त नहीं दी मज़हबी लोग सितम-पेशा नहीं हो सकते जो सितम-पेशा हैं वो मज़हबी अफ़राद नहीं वो न हिन्दू न मुसलमान न ईसाई हैं कोई मज़हब नहीं है उन का कोई मुल्क नहीं वो जहाँ-दुश्मन-ओ-ला-मज़हब-ओ-हरजाई हैं Share on: