ज़हर By Nazm << मौत का इंतिज़ार सफ़ेद चाक... रावी किनारे >> शब का सन्नाटा अब तो पिघल जाएगा रूह की तीरगी भी बिखर जाएगी मेरे इस आईना-ख़ाना-ए-जिस्म में कितने सूरज ब-यक वक़्त दर आए हैं अब ज़मीं की तिरी ख़ुश्क हो जाएगी साँप का ज़हर सारा निकल जाएगा Share on: