मलक-ए-शहर-ए-ज़िंदगी तेरा शुक्र किस तौर से अदा कीजे दौलत-ए-दिल का कुछ शुमार नहीं तंग-दस्ती का क्या गिला कीजे जो तिरे हुस्न के फ़क़ीर हुए उन को तशवीश-ए-रोज़गार कहाँ? दर्द बेचेंगे गीत गाएँगे इस से ख़ुश-बख़्त कारोबार कहाँ? जाम छलका तो जम गई महफ़िल मिन्नत-ए-लुत्फ़-ए-ग़म-गुसार किसे? अश्क टपका तो खिल गया गुलशन रंज-ए-कम-ज़र्फ़ी-ए-बहार किसे? ख़ुश-नशीं हैं कि चश्म ओ दिल की मुराद दैर में है न ख़ानक़ाह में है हम कहाँ क़िस्मत आज़माने जाएँ हर सनम अपनी बारगाह में है कौन ऐसा ग़नी है जिस से कोई नक़्द-ए-शम्स-ओ-क़मर की बात करे जिस को शौक़-ए-नबर्द हो हम से जाए तसख़ीर-ए-कायनात करे