चेहरा उस का सुर्ख़ गुलाब होंट भरे याक़ूत से हैं झील सी गहरी काली आँखें चाँद जबीं पे रहता है ज़ुल्फ़ों में अम्बर की ख़ुश्बू ताज-महल सा उस का जिस्म ग़ुंचों से भरी डाली की तरह वो लहराती बल खाती है बे-ख़ौफ़ी बे-फ़िक्री में मस्त मगन सी रहती है जैसे मधुबन की बाला जैसे हसीना गाँव की जैसी 'हसरत' की महबूबा जैसी प्यारी शाह-'क़ुतुब' की जैसे ग़ज़ल वो 'मीर' की हो हाँ वो बिल्कुल ऐसी ही है हाँ वो मेरी माशूक़ा है मेरी ही माशूक़ा है वो