जज़्बा-ए-उश्शाक़ काम आने को है फिर लज़ीज़-ओ-शीरीं जाम आने को है मौसम-ए-सर्मा की आमद मर्हबा क्यूँकि इस मौसम में आम आने को है ख़त्म होने को है वक़्त-ए-इंतिज़ार इंतिख़ाब-ए-ख़ास-ओ-आम आने को है धीरे धीरे चलता लँगड़ाता हुआ ख़ुश-अदा-ओ-ख़ुश-ख़िराम आने को है मुक़तदी तय्यार हों सफ़ बाँध कर सब फलों का अब इमाम आने को है क़ुर्बतों का होगा अब आग़ाज़ फिर फुर्क़तों का इख़्तिताम आने को है आते ही जाने की तय्यारी करे वो सवार-ए-तेज़-गाम आने को है वज्द में यूँ गुनगुनाता है 'असर' आम आने को है आम आने को है