जंगल By Nazm << आईना देखते हो राखी बंधन >> निसा जाल का फैलता सिलसिला मकानों की चीख़ें जकड़ कर शिकंजों में बुनियाद को तोड़ती हैं जिन्हें हरावल जड़ें ज़मीं-बोस होती हैं ऊँची छतें सब्ज़-माही मरातिब उठाए हुए बंदरों की सफ़ें आब-ए-ज़ेरीं के ख़ूँ से है जिस की नुमू सब्ज़ होता है अब फिर वही सुरख़-रू Share on: