कुछ दिन पहले तक मैं कबूतर थी आँखें बंद कर के सोचती कि दुनिया से बिल्लियों का वजूद मिट चुका है और उस से भी पहले मैं चकोर और तीतर के दरमियान कोई शय थी सुब्हान तेरी क़ुदरत की बोली बोलती थी और चाँदनी-रात में बे-क़रार रहती थी जब मैं उस से भी पहले कुतिया थी तो सारा सारा दिन अपने मालिक के पाँव चाटती रहती थी मगर मेरे प्यार का ये सिला मिला कि वो एक और कुतिया ले आया इस से पहले के जन्म में मैं एक ख़ूबसूरत हिरनी थी वो ज़माना सब से अच्छा था मगर बहुत जल्दी गुज़र गया और मुझे कुतिया बन जाना पड़ा हिरनी से पहले का अर्सा मैं ने ख़रगोश बन कर गुज़ारा था मुझ से सब प्यार किया करते थे मैं भी सब को चाहती थी तब मैं नर्म नर्म होती थी आज-कल मैं एक बकरी हूँ सोचती हूँ बहुत जी लिया है मेरा मालिक एक सख़्त-दिल आदमी है अन-क़रीब वो किसी क़साई के हाथ मुझे बेच देगा और लोग मेरा गोश्त खाते हुए सोचेंगे देखने में तो अच्छा था जाने क्यूँ गला नहीं