इक नए दौर की तरतीब के सामाँ होंगे दस्त-ए-जम्हूर में शाहों के गिरेबाँ होंगे बर्क़ ख़ुद अपनी तजल्ली की मुहाफ़िज़ होगी! फूल ख़ुद अपनी लताफ़त के गिरेबाँ होंगे नग़मा-ओ-शेर का सैलाब उमड आएगा वक़्त के सेहर से ग़ुंचे भी ग़ज़ल-ख़्वाँ होंगे नाव मंजधार से बे-ख़ौफ़-ओ-ख़तर खेलेगी नाख़ुदा बरबत-ए-तूफ़ाँ पे रजज़-ख़्वाँ होंगे राह-रौ अपनी मसाफ़त का सिला माँगेंगे रहनुमा अपनी सियासत पे पशेमाँ होंगे रास्त-गुफ़्तार कि हैं नाक़िद-ए-औलाद-ए-फ़रंग वक़्त कहता है कि फिर दाख़िल-ए-ज़िंदाँ होंगे ''तू कहाँ जाएगी कुछ अपना ठिकाना कर ले हम तो कल ख़्वाब-ए-अदम में शब-ए-हिज्राँ होंगे''