अंधेरा बढ़ रहा है अंधेरा बढ़ रहा है और हम दोनों की आँखें भी ज़रा कम-नूर होती जा रही हैं इस लिए ऐसा करो इक बार फिर से जो गुज़िश्ता अहद में वा'दे किए थे मोहब्बत के जो नग़्मे गुनगुनाए थे वफ़ा के फूल जो बरसाए थे वो ध्यान में लाओ चलो इक बार फिर दोहराते हैं ख़ुद को सुनो हम दोनों की आँखें अगर कम-नूर हैं तो क्या दिलों में याद का जश्न-ए-चराग़ाँ हम करें इस से कम-अज़-कम रात काटने के लिए कुछ रौशनी तो मिल सकेगी फिर चलो हम ताक़ पर रखे मोहब्बत के दिए को फिर जलाते हैं उदासी से ही दोनों मुस्कुराते हैं