तो क्या वो झूट था तू ने जो उस लड़की से बोला था मैं तेरी झील जैसी नीली आँखों पर ग़ज़ल के शे'र लिक्खूंगा मैं तेरी रेशमी ज़ुल्फ़ों में अपनी नज़्म के मोती पिरोउँगा मैं तेरी दूधिया रंगत कलाई में तिलाई चूड़ियों ऐसे खनकते गीत पहनाने का ख़्वाहाँ हूँ मुझे मा'लूम है फ़ुर्सत नहीं मिलती बहुत से और मौज़ूआत भी माना ज़रूरी हैं मगर उस से किया वा'दा भला क्या कम ज़रूरी है तू ऐसा कर कोई अपनी पुरानी नज़्म उस के नाम कर दे या ग़ज़ल के शे'र में रद्द-ओ-बदल कर के किसी सूरत भी उस का तज़्किरा कर दे जो तेरी शाइरी के आइने के सामने सिंघार करने बैठ जाती है नहीं मुझ से तो ऐसा भी नहीं मुमकिन उसे मेरी सभी नज़्में सभी ग़ज़लें ज़बानी याद होती हैं उसे तो मेरी वो ग़ज़लें भी अज़बर हैं जो मैं ने जा के सदियों बा'द कहनी हैं मैं उन याक़ूत होंटों पर फ़क़त ख़ामोशियाँ ही सब्त करता हूँ