दश्त की बे-पायाँ वुसअ'त में कोहसारों के दामन में ज़र्रा अपने होने और न होने का दुख झेल रहा था ज़र्रा जो ख़ुद अपने वजूद में एक मुकम्मल दुनिया है जिस के बत्न में सारा निज़ाम-ए-शमस-ओ-क़मर पोशीदा है जिस की वहदत के सीने में नज़र न आने वाली कसरत का जल्वा है अहल-ए-नज़र ने पिछली सदी में इस पामाल ज़मीर के अंदर इस बे-नाम वजूद में मुज़्मर उस ताक़त की गवाही दी है जो इस के बेदार ख़मीर में सदियों तक ख़्वाबीदा रही है अहल-ए-हुनर अहल-ए-हिकमत ने जब इस ख़ुफ़्ता क़ुव्वत का इदराक किया ज़र्रे का दिल चाक किया सदियों की सहमी हुई ना-आसूदा महरूमी को बे-बाक किया इसी तवानाई की बदौलत इसी हक़ीर से बे-तौक़ीर से ख़ाकिस्तर ज़र्रे ने इक दिन हीरोशीमा को ख़ाक किया