यूँ जश्न-ए-मसर्रत की हर सम्त घटा छाई फूलों पे निखार आया कलियों को हँसी आई शादाब हुई खेती फ़स्लों पे बहार आई बहती हुई नदियों ने की बादिया-पैमाई बापू के अहिंसा की नेहरू के तख़य्युल की तनवीर नज़र आई तस्वीर नज़र आई ज़ेहनों से जहालत की ज़ुल्मत को मिटा डाला अब इल्म के सूरज की घर-घर में किरन आई साइंस में हिरफ़त में हासिल हुई यकसूई इस दौर में भारत ने हर फ़न में जिला पाई अब दिल में उमंगें हैं नज़रों में मसर्रत है हर सम्त है ज़ेबाई हर सम्त है रानाई दुनिया की निगाहें भी पा-बोस-ए-क़यादत हैं इस बिन्त-ए-जवाहर की अल्लह रे मसीहाई