मेरा आँगन कितना कुशादा कितना बड़ा था जिस में मेरे सारे खेल समा जाते थे और आँगन के आगे था वो पेड़ कि जो मुझ से काफ़ी ऊँचा था लेकिन मुझ को इस का यक़ीं था जब मैं बड़ा हो जाऊँगा इस पेड़ की फुंगी भी छू लूँगा बरसों ब'अद मैं घर लौटा हूँ देख रहा हूँ ये आँगन कितना छोटा है पेड़ मगर पहले से भी थोड़ा ऊँचा है