जवानी

बेदार हुईं महर-ए-जवानी की शुआएँ
पड़ने लगीं आलम की इसी सम्त निगाहें
ख़्वाबीदा थे जज़्बात बदलने लगे करवट
रू-ए-शरर-ए-तूर से हटने लगा घूंगट
भरने लगे बाज़ू तो हुए बंद-ए-क़बा तंग
चढ़ने लगा तिफ़्ली पे जवानी का नया रंग
साग़र की खनक बन गई उस शोख़ की आवाज़
बरबत की हुई गुदगुदी या जाग उठे साज़
आज़ा में लचक है तो है इक लोच कमर में
आसाब में पारा है तो बिजली है नज़र में
आने लगी हर बात पे रुक रुक के हँसी अब
रंगीन तमव्वुज से गिराँ-बार हुए लब
वो देख बदलते हुए पहलू कोई उट्ठा
वो देख बिगाड़े हुए गेसू कोई उट्ठा
वो देख कि किस गुल की महक फैली है हर-सू
वो देख कि है कौन रवाँ बजते हैं घुँगरू
कम-बख़्त अजल थी ये जवानी की क़बा में
टुकड़े हैं किसी दिल के भी नक़्श-ए-कफ़-ए-पा में
This is a great तेरी जवानी शायरी. True lovers of shayari will love this शायरी जवानी की. Shayari is the most beautiful way to express yourself and this जवानी की शायरी is truly a work of art.

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