ये तन जो है हर इक के उतारे का झोंपड़ा इस से है अब भी सब के सहारे का झोंपड़ा इस से है बादशह के नज़ारे का झोंपड़ा इस में ही है फ़क़ीर बिचारे का झोंपड़ा अपना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा बाबा ये तन है दम के गुज़ारे का झोंपड़ा इस में ही भोले-भाले इसी में सियाने हैं इस में ही होशियार इसी में दिवाने हैं इस में ही दुश्मन इस में ही अपने बेगाने हैं शा-झोंपड़ा भी अपने इसी में नमाने हैं अपना न मोल है न इजारे का झोंपड़ा बाबा ये तन है दम के गुज़ारे का झोंपड़ा इस में ही लोग इश्क़-ओ-मोहब्बत के मारे हैं इस में ही शोख़ हुस्न के चाँद और सितारे हैं इस में ही यार-दोस्त इसी में पियारे हैं शा-झोंपड़ा भी अपने इसी में बिचारे हैं अपना न मोल है न इजारे का झोंपड़ा बाबा ये तन है दम के गुज़ारे का झोंपड़ा इस में ही अहल-ए-दौलत-ओ-मुनइम अमीर हैं इस में ही रहते सारे जहाँ के फ़क़ीर हैं इस में ही शाह और इसी में वज़ीर हैं इस में ही हैं सग़ीर इसी में कबीर हैं इतना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा बाबा ये तन है दम के गुज़ारे का झोंपड़ा इस में ही चोर-ठग हैं इसी में अमोल हैं इस में ही रोनी शक्ल इसी में ढिढोल हैं इस में ही बाजे और नक़ारे-ओ-ढोल हैं शा-झोंपड़ा भी इस में ही करते कलोल हैं इतना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा बाबा ये तन है दम के गुज़ारे का झोंपड़ा इस में ही पारसा हैं इसी में लवंद हैं बेदर्द भी इसी में है और दर्दमंद हैं इस में ही सब परंद इसी में चरंद हैं शा-झोंपड़ा भी अब इसी डर बे बंद हैं इतना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा बाबा ये तन है दम के गुज़ारे का झोंपड़ा इस झोंपड़े में रहते हैं सब शाह और वज़ीर इस में वकील बख़्शी ओ मुतसद्दी और अमीर इस में ही सब ग़रीब हैं इस में ही सब फ़क़ीर शा-झोंपड़ा जो कहते हैं सच है मियाँ 'नज़ीर' इतना न मोल का न इजारे का झोंपड़ा बाबा ये तन है दम के गुज़ारे का झोंपड़ा
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