मुझे भी आज इक झूमर पहनना है उम्मीदों का न ख़्वाबों और उमंगों का कि मैं ने उस की लड़ियों में हसीं मोती नहीं टाँके कई आँसू पिरोए हैं मुझे इस जाँ-फ़ज़ा झूमर को माथे पे सजाना है ज़माने से छुपाना है नया इक घर बसाना है बस इतना सा मिरी यादों का बे-रौनक़ फ़साना है मुझे झूमर पहनना है