कल की यादें मस्जिदें मोती की क़िले ला'ल के मरमर के ताज मूरतें मंदिर कलीसा यंत्र मंत्र गिरती दीवारें छतें साए में उन के धुँदलके दीमकें जाले ग़ुबार आसमाँ छूती इमारत बुलंद बार-ए-दीगर बार-ए-दीगर बार बार सर उठाते हादसात शफक़तें मेहर-ओ-मुरव्वत ज़ुल्म बे-मेहरी स्वार्थ ज़िंदगी लेती ही रहती है हमारा इम्तिहान इंकिशाफ़ ईजाद अफ़्कार-ओ-उलूम चहचहाते नाचते बुलबुल-ओ-ताऊस रस कानों में नूर आँखों में भरते घोलते ज़ह्न को आँखों को दस्त-ओ-पा को अपने खोलते गोद में मादर-ए-फ़ितरत की वो मासूम तिफ़्ल कुनमुनाता मुस्कुराता खेलता जिस की इक मासूम दुज़्दीदा नज़र ज़िंदगी को दिलकशी से हुस्न से भर देती है ढूँड लाते हैं अँधेरी रात में रौशनी इस गुनाह-ए-अव्वलीं की नित नई मंसूबा-दार सनअत-ओ-हिरफ़त फ़न्न-ए-ता'मीर तस्ख़ीर-ए-जिहात