जीवन भी ज्यामिति की तरह पूरक और अनुपूरक कोनों से होता है संचालित कुछ पकड़ते हैं तो छूट जाता है बहुत कुछ कुछ छूटता है तो मिल जाता है कुछ अपने हिस्से का मान ही नहीं मिलता यहाँ पाना होता है अपमान भी जो खाता है कटहल का कोआ उसे ही पचाना होता है बीज और मूसल भी केवल देवताओं के हिस्से आए विश का पान करते हैं शिव मनुष्य को ख़ुद ही पीना होता है अपने हिस्से का विश