क्यूँ आख़िर मुझे शैतान कहते हैं ये सारे लोग क्यूँ आख़िर मुझे शैतान कहते हैं अगर गंजा कोई हो सामने चंदिया चमकती हो तो क्या ये दिल नहीं कहता चपत इक आध जड़ने को हथेली जब खुजाती है मैं ऐसा कर गुज़रता हूँ मिरी बिल्डिंग का चौकीदार सो जाता है दिन में भी वो ख़र्राटे भी लेता है जो उस की नाक पर इक टेप चिपकाने को जी चाहे मैं ऐसा कर गुज़रता हूँ पड़ोसन आंटी की मुर्ग़ियाँ अंडे जो देती हैं मैं अक्सर सोचता हूँ इन से चूज़े क्यूँ निकलते हैं मिरी ख़्वाहिश ये होती है उन्हें मैं तोड़ कर देखूँ मैं ऐसा कर गुज़रता हूँ गली के मोड़ पे बैठा हुआ मोटा सा इक कुत्ता अगर दौड़े तो कैसा हो अगर भौंके तो कैसा हो पटाख़ा उस की दुम पर बाँध कर माचिस दिखाने को मिरा जी चाहता है गर मैं ऐसा कर गुज़रता हूँ बुज़ुर्गो मुझ को बतलाओ ये सब करने को आख़िर क्या किसी का दिल नहीं कहता क्या मैं सब से अनोखा हूँ ये सब शैतान करते हैं कोई इंसाँ नहीं करता ये सारे लोग क्यूँ आख़िर मुझे शैतान कहते हैं