चले चले जाते हैं क़दम नज़रें मिलीं रुक जाते हैं क़दम मंज़िल ना दिखे मुड़ जाते हैं क़दम मंज़िल जो दिखे जुड़ जाते हैं क़दम सफ़र करते पैहम थक जाते हैं क़दम कुछ नोकीला चुभ जाए रो जाते हैं क़दम उस के पास आने से पीछे जाते हैं क़दम शर्म क्यों इतनी कर जाते हैं क़दम देख बैठ यहाँ से कहाँ जाते हैं क़दम वापस आते हैं या भटक जाते हैं क़दम ग़लत बहुत ग़ुस्से में उठ जाते हैं क़दम मिले जो सुर-ओ-ताल बहल जाते हैं क़दम वक़्त से तेज़ जाए जाते हैं क़दम वक़्त जो आए मर जाते हैं क़दम