बस इक मैं हूँ बस इक तुम हो दूर ख़ला में सन्नाटा है दिल में ख़ामोशी का दरिया बहता है बहता रहता है जिस के किनारे बैठे हुए हम सोचा करते हैं बातों को इन बातों को जिन का कुछ मफ़्हूम नहीं है मौसम क्या है बादल क्या है सब कुछ अपने दिल जैसा है ख़ाली ख़ाली वीराँ वीराँ तुम और मैं हम कुछ भी नहीं हैं बस इक सच है कड़वा सच है जो लम्हे गिनता रहता है