ऐ निगाह-ए-मस्त अपना सा ही मस्ताना बना मय बना दे रूह को और जाँ को पैमाना बना कैफ़-ओ-मस्ती का बना दे जाम दस्त-ए-शौक़ में लूट ले जो मै-कदा वो पीर-ए-मय-ख़ाना बना फ़ैज़ पर तेरे निगाह-ए-फ़ैज़ है ये मुनहसिर जिस को चाहे जैसे चाहे अपना दीवाना बना ख़ुद से बेगाना बना दे कैफ़-ओ-मस्ती छीन ले लौ में शम्-ए-इश्क़ की जल जाऊँ परवाना बना मुंतशिर कर दे बना कर हर तरफ़ अपनी महक मेरे अफ़्साने को अफ़्सानों का अफ़्साना बना फ़ासला रख उतना अपने और मेरे दरमियाँ कोई न समझे कि किस का कौन दीवाना बना सामने आऊँ तिरे तो कपकपाते होंट हों तर्ज़-ए-मिन्नत को मिरी तू तौर-ए-तिफ़्लाना बना जान-ओ-तन से रूह के रिश्तों की वुसअ'त देख ली दिल मिरा पहलू में रह कर मुझ से बेगाना बना कितना ऐ साक़ी-ए-मय-ख़ाना तिरा मम्नून हूँ लुत्फ़ से तेरे ही मेरा अज़्म रिंदाना बना फूँक दे इक रूह जान-ओ-तन में अपने इश्क़ की ये न पूछ 'अशरफ़' से कैसे तेरा दीवाना बना