वाए तक़दीर मैं गधा न हुआ हम-नवा कृष्न चंद्र का न हुआ मास्टर की पलक झपकते ही हाज़िरी दे के मैं रवाना हुआ वही आया सवाल पर्चे में एक दिन का भी जो पढ़ा न हुआ खेल भी हम सके न जी भर के खेलने का भी हक़ अदा न हुआ मुद्दतों अपने मास्टर जी से मदरसे में भी सामना न हुआ मैं वो दादा हूँ सब को मार के भी आज तक क़ाबिल-ए-सज़ा न हुआ 'कैफ़' मैदान-ए-शे'र-गोई में कोई 'ग़ालिब' सा दूसरा न हुआ