मैं जब छोटा था तो चलते चलते ख़्वाब देखा करता था अक्सर मैं सिर्फ़ ख़्वाब देखने के लिए ही चलता था सुब्ह को दोपहर को शाम को रात को गहरी नींद सोता था जो गहरी नींद सोते हैं वो ख़्वाब नहीं देखते सारे ख़्वाबों का मरकज़ी किरदार मैं ही हुआ करता था मगर मेरे क़रीबी और प्यारे लोग भी उस में शामिल रहते थे मेरे ख़्वाब तवील और मंज़ूम होते थे और मैं अक्सर उन में तरमीम किया करता था कुछ ख़्वाब जो दिल को न भाते थे उन्हें छोड़ कर नए ख़्वाब की शुरूआ'त करता था अब मैं रात भर और ख़ास कर सुब्ह को क़िस्तों में ख़्वाब देखता हूँ अध-जले ख़्वाब कुछ ख़्वाबों से नजात मिलती है तो जी ख़ुश हो जाता है सारे ख़्वाब जाने पहचाने होते हैं मानूस ख़्वाब तफ़सीली ख़्वाब कुछ ख़्वाब रोज़ा-मर्रा की तफ़सीलों से वाज़ेह कुछ सुहाने ख़्वाब जब रुक जाते हैं तो उन्हें देखने की नाकाम कोशिश करता हूँ ख़्वाब ख़ुद नहीं दोहराते अन-देखे ख़्वाब अब ख़्वाबों की दुनिया में हैं