कल जो गुज़र गया एक ख़्वाब था ख़्वाब जो टूट गया आईने की तरह और टूटे आईने की किर्चियाँ समेटना हाथों को लहूलुहान कर देगा कल आने वाला अब्र का एक पारा है जो तुम्हारी ज़मीनों पर बरसे बग़ैर भी गुज़र सकता है वो तुम्हारी मौहूम उम्मीदों का साया है और साया कब किस का हो पाया है तुम साए को पकड़ने की कोशिश मत करो कि मुबहम उम्मीदों की ना-पुख़्ता शाख़ें ख़ुशी से फूल नहीं खिला सकतीं आज आज तुम्हारा अपना है तुम्हारी मुट्ठी के सिक्के की तरह आज के पौदों पर खिलने वाले फूलों को चुन लो इस से पहले कि वो मुरझा जाएँ