कल कहीं ऐसा न हो By Nazm << फ़ैसला बीमार दिनों में >> मेरे लफ़्ज़ अगर तुम्हें सुनाई नहीं देते तो मुझ पर हँसते क्यों हो और मुझे पत्थर क्यों मारते हो कल कहीं ऐसा न हो कि समाअ'तें बहाल हो जाएँ और ये ज़ख़्म तुम्हें तकलीफ़ पहुंचाएँ Share on: