काला पत्थर By Nazm << लरज़ता दीप जिहत की तलाश >> मेरा चेहरा आईना है आईने पर दाग़ जो होते लहू की बरखा से मैं धोता अपने अंदर झाँक के देखो दिल के पत्थर में कालक की कितनी परतें जमी हुई हैं जिन से हर निथरा-सुथरा मंज़र कजला सा गया दरिया सूख गए हैं शर्म के मारे कोएले पर से कालक कौन उतारे!! Share on: