कनकव्वा बन जाऊँ By बाल कविता, Nazm << इल्तिजा हमारी ज़बान >> तारा सा लहराऊँ कनकव्वा बन जाऊँ जब अम्माँ तुम आओ छत को ख़ाली पाओ चुप की चुप राह जाओ सारे में ढुंडवाओ फिर भी मैं तो न आऊँ कनकव्वा बन जाऊँ डोर को जब तुम पाओ खींचो और खिंचवाओ और हँसती भी जाओ और फिर मुझ को बुलाओ तब मैं घर में आऊँ कनकव्वा बन जाऊँ Share on: