इक अदन जल रहा था निगहबाँ ख़ुदा उस घड़ी सातवें आसमाँ पर न था और अज़ल से अबद तक अहाता किए एक अफ़ई की मनहूस आवाज़ थी और ख़ुदा मेरे शाम-ओ-सहर में न था मेरे घर में न था और ख़ुदा जो दबे पाँव खिड़की से पीछे हटा जो मिरे साथ सूनी सड़क पर रुका यक-ब-यक मुन्फ़इल हिचकियों में बिखरने लगा इक जलाल-ए-रवाँ मेरे हमराह गलियों में चलने लगा और ख़जालत की ये रात इक सर्द पत्थर पे तकिया किए मेरी बाँहों में बाँहें दिए मेरे मा'बूद ने क़हरमाँ कर्ब में काट दी और अदन जल बुझा ज़ुल-जलाल आँसुओं के तुफ़ैल आज भी हर नफ़स इक सुलगता हुआ फ़र्ज़ है इक नया घर मुक़द्दस घरों की क़सम मेरे मा'बूद पर आज भी क़र्ज़ है