हामिला बदलियों ने अपने कटे-फटे किनारों में चाँदी की झालरें लटका रखी थीं और अपनी दुलाइयों के बख़ियों में रंगों की बिचकरियाँ छुपा रक्खी थीं उफ़ुक़ सुर्ख़ था जैसे शहर के शोहदे डरपोक दुकान-दारों पर अपनी धाक जमाने नई कटाईयाँ कमाने पर मुक़र्रर हूँ सोडे की बोतलों से एक दूसरे पर हमला-आवर हूँ और फ़ुटपाथों पर शीशों के टुकड़ों से अजनबी राहगीरों के नंगे पैरों से सिर्फ़ उन्नाब दस्तियाब हो ज़मीन गुलनार बने बस इसी तरह का रंग आसमान में खिला हुआ मिला रात की फ़सील के क़रीब शाम का मुहासरा किए पड़ा हुआ था मैं * ऐ अल्लामा आज तेरे किसान की काफ़िर बेटी अपने गीत उतार के मेरी सम्त से अपना बिद्दत फेरे इसी नीम-बरहना ख़ूनीं-मंज़र में उगी हुई थी वादी के दिए में शो'ले की तरह लरज़ रही थी इस की नंगी पीठ पर तनी हुई स्पैनी रीढ़ की हड्डी के आस पास मुज़्तरिब चुटकियों भरे रसीले कूल्हों के जलाली तनाव ने दो नन्हे नन्हे क़ौस बना दिए थे जिन में जाते दिन की रौशनी पारे की तरह फिसल फिसल कर जम्अ' हो रही थी और उन गूँगे हल्क़ों के तंग-दान में जान पड़ गई थी आज उन्ही कोसों में अपनी आँखें छोड़ चला और अपने ग़म भूल गया मेरे लोग नई तहज़ीब मुसख़्ख़र करने आए थे वो तारीख़ हमेशा याद रही उस का सोग अभी तक है