क़र्तबा में By Nazm << औरत तर्जुमान-ए-मुस्तक़बिल >> बदन पे कोई ज़रा है न हाथ में तलवार और अश्क-ज़ार में सदियों के उंदुलुस का सफ़र इस आसमान के नीचे कहीं पड़ाव न था अजब तिलिस्म था वो आठ सौ बरस का सफ़र अजब नहीं जो किसी सुब्ह फूल-बन के खिलूँ मिरा सफ़र है अँधेरे में ख़ार-ओ-ख़स का सफ़र Share on: