ऐ मिरे हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ बह रही हैं तेरे सीने पर वो शीतल नद्दियाँ खेलता है जिन की लहरों पर सुरूरों का जहाँ झूमता है जिन सुरूरों में शबाब-ए-जावेदाँ पासबानी जिन की करता है हिमाला सा जवाँ ऐ मिरे हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ तेरे बाग़ों की लहक से झाँकती है ज़िंदगी ज़िंदगी वो मौत को भी जिस से हो शर्मिंदगी जिस से हासिल हो हरीम-ए-रूह को ताबिंदगी ख़ुल्द-ज़ारों का है तेरे गुल्सितानों पर गुमाँ ऐ मिरे हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ तेरे पर्बत सीम-ओ-ज़र का गुनगुनाता आबशार तेरे चश्मे बरबत-नाहीद का ज़र्रीन तार तेरे जंगल ख़ुल्द के सपने की सुंदर सी बहार मस्त झोंकों की ज़बाँ पर मध भरी मौसीक़ियाँ ऐ मिरे हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ तेरी मस्ताना हवाओं में जवानी ज़ौ-फ़गन ज़र्रे ज़र्रे से नुमायाँ तूर का सा बाँकपन मुस्कुराती है फ़ज़ाओं में नशीली सी फबन तेरी वादी में सुरूर-ओ-कैफ़ की नहरें रवाँ ऐ मिरे हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ बाम-ए-आज़ादी के ख़ुश-अंजाम ज़ीने के लिए तेरी उल्फ़त के नशीले जाम पीने के लिए यानी तेरी गोद में आज़ाद जीने के लिए बिजलियाँ बन कर गिरेंगे ग़ैर पर हम ना-गहाँ ऐ मिरे हिन्दोस्ताँ जन्नत-निशाँ