खिंची है क़ौस-ए-क़ुज़ह आसमान पर सर-ए-शाम! अजीब कैफ़ सा है हैरत-ए-नज़र में निहाँ! अजीब कैफ़ सा जिंसी भी मावराई भी छलकते जिस्म की गोलाइयों का राज़ है क्या! और उस में रूह की रंगीन धारियों का फ़ुसूँ!? लतीफ़ सतह-ए-तफ़क्कुर पे खोया खोया सा उभर रहा है ये पुर-कर्ब ओ पुर-सुरूर सवाल ये सात रंग की लहरें ये दाएरे की कमान!