सुनते थे गुनाहों की इंतिहा ज़मीं पर हद से जब बढ़ जाएगी तो क़यामत बरपा होगी बरसेगी आग आएगा सैलाब क़ुदरत का क़हर नाज़िल होगा अल्लाह रहम करे आज इस हौल-नाक दौर से गुज़र रहे हैं हम जहाँ ज़मीं के हर ख़ित्ते में टुकड़ों टुकड़ों में ज़िंदगी हो रही है तबाह कहीं जंग कहीं वहशत कहीं भूक कहीं दहशत गूँजते धमाके बहते दरिया लहू के मौत के क़हक़हे यहाँ से वहाँ तलक ज़हरीली फ़ज़ाओं में बेबसी ही बेबसी गोया सब कुछ अपने इख़्तियार से बे-क़ाबू अब और किस शक्ल में आएगी क़यामत