तेरी राह देखते देखते आँखों ने देखना ही छोड़ दिया है अफ़्सुर्दगी हड्डियों के गूदे में टीसें मार रही है गोश्त-पोस्त थोर-ज़दा ज़मीन की तरह बर्बादी का नक़्शा पेश कर रहा है लहू शिरयानों में जम कर रह गया है न आने वाले तू कब तक न आएगा काएनातों के ख़ालिक़ किन आफ़ाक़ में खो गया है तू कौन से आसमान भा गए हैं तुझे कौन से ख़ला खा गए हैं तुझे ख़ला ही पसंद हैं तो मेरे दिल में आ कि तू ने इस से बड़ा ब्लैक-होल तो अभी तक पैदा नहीं किया आ ऐ ख़ुदा आ आ मेरे दिल के ख़ला में आ तू अगर हर जगह है तो मेरा दिल क्यूँ ख़ाली है दिल के अथाह पाताल में ढूँढता हूँ और तुझे पाता नहीं सोचता हूँ कहीं ख़ला ही ख़ुदा न हो शायद इंतिज़ार ही उस की मौजूदगी हो शायद अदम ही उस का वजूद हो और नफ़ी उस का इसबात फिर ये सोच पल्टा खाती और दिल के ख़ला में उतर जाती है और एक आवारा आवाज़ की तरह गूँजती है गूँजती है गूँजती है गूँजे ही चली जाती है और आहिस्ता आहिस्ता एक लफ़्ज़ में ढल जाती है ख़ुदा और आख़िर में एक सुर रह जाता है आ दूर कहीं किसी ने दरबारी का अलाप छेड़ा है आ मेरी पथराई हुई आँखें नम हो जाती हैं दिल ख़ून हो कर आँखों से टपक पड़ता है और दिल के ख़ला में गूँजती हुई आवाज़ पुकार उठती है मैं ने तो पहले ही कहा था यही ख़ुदा है