वो ख़ूब-सूरत लड़कियाँ दश्त-ए-वफ़ा की हिरनियाँ शहर-ए-शब-ए-महताब की बेचैन जादू-गर्नियाँ जो बादलों में खो गईं नज़रों से ओझल हो गईं अब सर्द काली रात को आँखों में गहरा ग़म लिए अश्कों की बहती नहर में गुलनार चेहरे नम किए हस्ती की सरहद से परे ख़्वाबों की संगीं ओट से कहती हैं मुझ को बेवफ़ा हम से बिछड़ कर क्या तुझे सुख का ख़ज़ाना मिल गया