ख़ामुशी By Nazm << मजबूरी कलियों का शबाब >> दर-हक़ीक़त ख़ामुशी मेराज है गुफ़्तार की इस से बेहतर कोई भी सूरत नहीं इज़हार की हो गई है नुत्क़ की हर हर अदा जब बे-असर मैं ने देखा है तिलिस्म-ए-ख़ामुशी को कारगर ख़ामुशी ऐसे भी लम्हों की कहानी कह गई जिन में गोयाई पशेमानी उठा कर रह गई Share on: