कोई इमेज किसी बात का हसीं साया नए पुराने ख़यालों का इक अछूता मेल किसी की याद का भटका हुआ कोई जुगनू किसी के नीले से काग़ज़ पे चंद अधूरे लफ़्ज़ बग़ावतों का पुराना घिसा पिटा नारा किसी किताब में ज़िंदा मगर छुपी उम्मीद पुरानी ग़ज़लों की इक राख बे-दिली ऐसी ख़ुद अपने आप से उलझन अजीब बे-ज़ारी ग़रज़ कि मूड के सौ रंग आईने परतव मगर ये क्या हुआ अब कुछ भी लिख नहीं सकता न जाने कब से ये बे-मअ'नी ख़ामुशी बे-मुहीत ख़ुद अपने साए से मैं छुट गया हूँ या शायद कहीं मैं लफ़्ज़ों की दुनिया को छोड़ आया हूँ