इसी उदास खंडर के उदास टीले पर जहाँ पड़े हैं नुकीले से सुरमई कंकर जहाँ की ख़ाक पे शबनम के हार बिखरे हैं शफ़क़ की नर्म किरन जिस पे झिलमिलाती है शिकस्ता ईंटों पे मकड़ी के जाल हैं जिस जा यहीं पे दिल को नए दर्द से दो-चार किया किसी के पाँव की आहट का इंतिज़ार किया इसी उदास खंडर के उदास टीले पर ये नहर जिस में कभी लहर भी उठी होगी जो आज दीदा-ए-बे-आब-ओ-नूर है गोया जिसे हुबाब के रंगीन क़ुमक़ुमे न मिले बजाए मौज जहाँ साँप रक़्स करते थे यहीं निगाह-ए-तमन्ना को अश्क-बार किया किसी के पाँव की आहट का इंतिज़ार किया इसी उदास खंडर के उदास टीले पर मुहीब-ए-ग़ार के कोने पे ये झुका सा दरख़्त फ़ज़ा में लटकी हुई खोखली जड़ें जिस की ये टहनियाँ जो हवाओं में थरथराती हैं बता रही हैं कि माज़ी की यादगार हैं हम उन्हीं की छाँव में शाम-ए-जुनूँ से प्यार किया किसी के पाँव की आहट का इंतिज़ार किया इसी उदास खंडर के उदास टीले पर