अभी मत छेड़ना मुझ को अभी हर ज़ख़्म कारी है अभी उस की जुदाई की फ़क़त अजरक उतारी है अभी सदमे उठाने हैं कई लम्हे मोहब्बत के अज़िय्यत में बिताने हैं मिरे हर ज़ख़्म को हमदम अभी नासूर होना है बड़ी लम्बी मसाफ़त है थकन से चूर होना है अभी पलकों को चूमेंगे तुम्हारी याद के जुगनू तुम्हारे क़ुर्ब की ख़ुशबू तुम्हारी बात का जादू अभी कुछ भी नहीं बिगड़ा अभी कुछ भी नहीं बदला अभी तो साँस की लय पर हर इक ख़्वाहिश मचलती है अभी तो मौसम-ए-हिज्राँ गुमाँ की इब्तिदा में है अभी बंद-ए-क़बा में है अभी तो ना-तमामी का समुंदर पार करना है अभी ख़ुद से उलझना है अभी ख़ुद से मुकरना है अभी हमराह रखना है ख़सारा सारे जीवन का शजर दिल में उगाना है ज़ियाँ के ज़र्द सावन का