मैं अपनी औलाद के लिए दूध की एक बोतल अपने साहब के लिए तस्कीन घर के लिए मशीन और अपने लिए एक आहट बन के रह गई हूँ मेरा घर जहाँ मुझे रात और दिन इंतिज़ार के दहकते हुए लम्स लपेट कर सोना पड़ रहा है ख़याल की अध-सिली बास से कलाइयों के गजरे गूँध कर सिंघार करना पड़ रहा है तन्हाइयों के सवाल होंट की सुर्ख़ियों की तहों में दबा कर अलविदाई बोसों का जवाब सहना पड़ रहा है ख़मोश टटोलती हुई पुतलियाँ काजलों की लकीरों की जगह सजा कर आँसुओं के दरमियान हँसना पड़ रहा है मेरा घर जहाँ मुझे अश्या-ए-सर्फ़ की तरह रहना पड़ रहा है