चुप-चाप रहो वर्ना ख़ामोशी की चादर चाक हो जाएगी मुमकिन है इस की ये पाकी भी पाकी न रह जाए और यहीं फिर दिन के ढलने पर एहसास-ए-गुनह बढ़ जाए पाकी, पाकी न रह जाए और यहीं ये ख़ामोशी की चादर ओढ़ न पाए कोढ़ मन का वो बन जाए बेहतर है चुप-चाप रहो इस ख़ामोशी की चादर को गर्द-ए-अना से दूर रखो ख़ुद को दुनिया से दूर रखो दुनिया ख़ुद बन जाओ अपने अंदर तह-दर-तह बातिन में एक जहाँ आबाद करो अख़्लाक़ ओ सदाक़त सब्र-ओ-क़नाअत अब्द ओ रियाज़त सम्तें बन जाएँ अर्ज़ ओ समा बन जाएँ ख़ुद को ख़ुद में तहलील करो अपनी फिर तकमील करो